कामदा एकादशी व्रत (Kamada Ekadashi Vrat)

कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) जिसे फलदा एकादशी (Falda Ekadashi) भी कहते हैं, श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है। इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोनुकूल फल देने वाली होने के कारण फलदा (falda) और कामना kamna) पूर्ण करने वाली होने से कामदा (kamada) कही जाती है। इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनायी थी। आइये हम भी इस एकादशी की पुण्य कथा का श्रवण करें।
कामदा एकादशी कथा: (Kamada Ekadashi Vrat katha)
पुण्डरीक नामक नाग का राज्य अत्यंत वैभवशाली एवं सम्पन्न था। उस राज्य में गंधर्व, अप्सराएं एवं किन्नर भी रहा करते थे। इस राज्य में ललिता नामक अति सुन्दर अप्सरा और ललित नामक श्रेष्ठ गंधर्व का वास था। ये दोनों पति पत्नी थे। इनके बीच अगाध प्रेम की धारा बहती थी। दोंनों में इस कदर प्रेम था कि वे सदा एक दूसरे का ही स्मरण किया करते थे, संयोगवश एक दूसरे की नज़रों के सामने नहीं होते तो विह्वल हो उठते। इसी प्रकार की घटना उस वक्त घटी जब ललित महाराज पुण्डरीक के दरबार में उपस्थित श्रेष्ठ जनों को अपने गायन और नृत्य से आनन्दित कर रहा था।
गायन और नृत्य करते हुए ललित को अपनी पत्नी ललिता का स्मरण हो आया जिससे गायन और नृत्य में वह ग़लती कर बैठा। सभा में कर्कोटक नामक नाग भी उपस्थित था जिसने महाराज पुण्डरीक को ललित की मनोदशा एवं उसकी गलती बदा दी। पुण्डरीक इससे अत्यंत क्रोधित हुआ और ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया।
ललित के राक्षस बन जाने पर ललिता अत्यंत दु:खी हुई और अपने पति को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए यत्न करने लगी। एक दिन एक मुनि ने ललिता की दु:खद कथा सुनकर उसे कामदा एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया। ललिता ने उसी मुनी के आश्रम में एकादशी व्रत का पालन किय और द्वादशी के दिन व्रत का पुण्य अपने पति को दे दिया। व्रत के पुण्य से ललित पहले से भी सुन्दर गंधर्व रूप में लट आया।
व्रत विधि: (Kamada Ekadashi Vrat Vidhi)
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करें। विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करें। आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करें। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजना ग्रहण करें। इस प्रकार जो चैत्र शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामना पूर्ण होती है।
Tags
Categories
Latest Posts
- ➺ शत अपराध शमन व्रत (Shat Apradh Shaman Vrata)
- ➺ प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosha vrata and Vidhi)
- ➺ Varuthini Ekadashi Vrat - वरूथिनी एकादशी व्रत एवं महात्म[...]
- ➺ Bhishma Panchak Vrat Katha - भीष्म पंचक व्रत कथा विधि
- ➺ Navgrah Shanti Durga Pooja - नवग्रह शांति दुर्गा पूजा
- ➺ शनिवार के दिन शनि व्रत (Shani Dev Vrat )
- ➺ कामदा एकादशी व्रत (Kamada Ekadashi Vrat)
- ➺ वामन जयन्ती व्रतोपवास (Vaman Jayanti Vrat)
- ➺ Arti Santoshi Ma – सन्तोषी माता की आरती
- ➺ Ganesh jI ki Arti – गणेश जी की आरती
- ➺ Arti Amba Gauri – अम्बे गौरी की आरती
- ➺ Ramayan ji ki Arti – आरती श्री रामायणजी की ।
- ➺ Arti Shiv Shankar – शिव शंकर जी की आरती
- ➺ Arti – Krishna Kunjvihari – आरती कुँज बिहारी की
- ➺ Hanuman Ji ki Arti – हनुमान जी की आरती
- ➺ Aarti – Om Jai Jagadish Hare
- ➺ Lakshmi arti Laxmi jI ki Aarti – लक्ष्मी जी की आरती
- ➺ Asamai vrat katha (आसमाई व्रत कथा)
- ➺ सत्यनारायण व्रत एवं पूजा विधि और कथा (The story of Satya[...]
- ➺ पद्मिनी एकादशी व्रत कथा महात्मय (Padmini Ekadashi Vrat K[...]