Magha Shukla Saptami vrat Katha vidhi (माघ शुक्ल सप्तमी है व्रत कथा विधि)

सूर्य सप्तमी व्रत महिमा (Surya Saptami vrat Mahima):
माघ शुक्ल सप्तमी का व्रत सूर्य देवता को समर्पित है. सूर्य को शास्त्रों एवं पुराण में आरोग्यदायक कहा गया है. सूर्य की उपासना से रोग मुक्ति का जिक्र कई स्थानों पर आया है. इस व्रत को करने वालों के रोग ठीक हो जाते हैं. त्वचा सम्बन्धी रोग होने पर यह व्रत रामवाण की तरह काम करता है. वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो सूर्य की रश्मियों में चमत्कारी गुण बताये गये है जिसके प्रभाव से रोगों का अंत होता है. वर्तमान समय में सूर्य चिकित्सा पद्धति सूर्य की किरणों पर ही आधारित है.
माघ शुक्ल सप्तमी सूर्य व्रत कथा (Magha Shukla Saptami Surya Vrat katha):
कथा है कि श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने बल और शारीरिक सष्ठव का अभिमान हो गया था. एक बार दुर्वासा ऋषि जो अत्यंत क्रोधी स्वभाव के ऋषि माने जाते हैं श्री कृष्ण से मिलने आये. दुर्वासा ऋषि का शरीर उन दिनों बहुत ही दुबला हो गया था क्योकि वह कठिन तप में लम्बे समय से लीन थे. ऋषि को देखकर शाम्ब को हंसी आ गयी। क्रोधी स्वभाव के ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता पर क्रोध आ गया और उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ का श्राप दे दिया। ऋषि का श्राप तत्क्षण प्रभाव में आ गया। चिकित्सा से जब कोई लाभ नहीं हुआ तब श्री कृष्ण ने शाम्ब को सूर्योपासना की सलाह दी. सूर्य की उपासना से शाम्ब कुष्ट रोग से मुक्त हो गये.
एक अन्य कथा के अनुसार छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्घन के दरबार में एक कवि थे जिनका नाम मयूरभट्ट था. मयूर भट्ट कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गये. रोग से पीड़ित होने पर उन्होंने सूर्य सप्तक की रचना की. इस रचना के पूर्ण होने पर सूर्य देव ने उन्हें रोग से मुक्त कर दिया.
सूर्य की रोग शमन शक्ति का उल्लेख वेद, पुराण एवं योग शास्त्र में स्पष्ट वर्णित है. इनमें यह भी लिखा है कि आरोग्य सुख हेतु सूर्य की उपासना सर्वथा फलदायी है. माघ शुक्ल की सप्तमी जिसे अचला सप्तमी (Achla Saptami), सूर्यरथ सप्तमी (Suryarath Saptami), आरोग्य सप्तमी (Arogya Saptami) के नाम से सम्बोधित किया गया है सूर्य की उपासना के लिए बहुत ही सुन्दर दिन कहा गया है. इस दिन जो व्यक्ति सूर्य देव की उपासना करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है.
माघ शुक्ल सप्तमी व्रत विधि (Magha Shukla saptami vrat vidhi)
भविष्य पुराण में अचला सप्तमी (Achla Saptami) व्रत का महात्मय विस्तार पूर्वक बताया गया है. श्री कृष्ण कहते हैं जो इस व्रत को करना चाहते हैं उन्हें षष्ठी के दिन एक बार भोजन करना चाहिए. सप्तमी के दिन सूर्योदय काल में किसी नदी या जलाशय में स्नान करना चाहिए. स्नान के पश्चात तिल के तेल से दीपक जलाकर सूर्य और सप्तमी तिथि को प्रणाम करना चाहिए और दीपक को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.
सूर्यदेव की पूजा के पश्चात ब्राह्मणों को अपनी श्रद्धा एवं क्षमता के अनुसार दान दे कर विदा करें. आप इस दिन अपने घर पर भोजन बनाकर ब्रह्मणों को भोजन कराएं. इस प्रकार व्रत करन से सूर्य देव की प्रसन्नता हासिल होती है और व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाता है. इस व्रत के विषय में यह भी मान्यता है कि जो व्यक्ति यह व्रत करता है उसे वर्ष भ्रर के सभी रविवार का व्रत करने से जो पुण्य मिलता है वह प्राप्त होता है.
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